Tuesday, December 18, 2007

कवि की सरस्वती वन्दना

कवि की सरस्वती वन्दना
ज्ञान की विज्ञान की, जहान की हे बुद्धि देवी
माता शारदे नमन तुझको हज़ार है,
गीत हो या छन्द हो या दोहा हो या श्लोक कोई
सबकी हे स्वामिनी प्रणाम बार बार है
आज दे आशीश ऐसी, कन्ठ हो सुकन्ठ मेरा
वाणी मे हे शरदा नज़र तू ही आये माँ
बाकी सारे कवियों के गले आज बैठ जायें
मेरे सामने कोई कवि ना टिक पाये माँ
मेरे नाम का हो हौवा, वो जो बोलें लगें कौवा
ऐसी कांव कांव सी आवाज़ उन्हें दे दे माँ
मुझे मिलें तालियाँ, बाकी को मिलें गालियाँ
औ मुझे पुष्प हार उनको बुखार दे दे माँ
श्रोता जो ना करे वाह वाह, जले जीभ उसकी
बीच में जो उठे टांग उसकी माँ तोङिये,
तालियाँ बजाये जो ना, दाद खाज खुजली हो,
ऐसे निखट्टू श्रोता को, कभी मत छोङिये