Tuesday, December 25, 2007

मौत की फाग

तुम लिखते रहो
हुस्नो इश्क़, पर ही शायरी
ज़िन्दा दिली के
हम को मगर, राग चाहिये
यह वक़्त है लो
हाथ मे, मशाल सी कलम
दहशत की चिता
फूँकने को, आग चाहिये
इस होलिका को
मिल के सारे, फूंक देंगे हम
बस दिल मे सब के
थोङी-थोङी, आग चाहिये
जो मारते हैं
बेकसूरों को, बिना वजह
उनके लिये तो
मौत की ही, फाग चाहिये