Sunday, January 27, 2008

तलाश

रिश्तों मे दुख, नातों मे दुख
घर मे भी दुख, बाहर भी दुख
जीवन के हर मोङ पे बस दुख
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी किसी की बातें दुखतीं
कहीं पुरानी यादें दुखतीं
रक्त के वो सम्बन्ध खो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

मन मे जो भी तनाव भरता
जाकर इक कागज़ पे उतरता
कागज़ भी अब बोझ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी पुराने लोग थे कहते
बँटने से सुख दुगुना होता
मैने भी था सुखों को बाँटा
पर बँट कर वे लोप हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

भटक भटक कर मन भी हारा
रहा अकेला मै बेचारा
सपने भी अब स्वयम् सो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कोई कहे कर्तव्य मे सुख है
कोई कहे वैराग्य में सुख है
सारे सच अब झूठ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

Monday, January 21, 2008

बरखा

छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो
नयनों का जल तक सूख चुका
सावन के मेघों तुम बरसो
प्यासी धरती प्यासे जंगल
प्यासी नदियाँ प्यासे हैं मन
प्यासों की प्यास बुझाने को
लेकर सारा जल धन बरसो
जलती धरती तपते मरुथल
नदियाँ भी भूल गयीं कल कल
मदमस्त पपीहा रहा मचल
उसकी ही खातिर तुम बरसो
घनघोर घटा सावन की छटा
घूंघट ना गगन का पवन हटा
ठंडी सी फुहारें आयी हैं
ओ रे मयूर अब मत तरसो
छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो