Sunday, December 2, 2007

प्यास

मोती से कुछ अक्षर होंगे
शब्दों का सागर होगा
शब्दों के सागर मे डूबा
छन्दों का गागर होगा
गागर मे गीतों का पानी
मन की प्यास बुझायेगा
ना जाने कब ऐसा पानी
पनिहारा कवि लायेगा

उलझन

जीवन क्यों तुम बीत रहे हो
व्यर्थ अनर्थ सी बातों में
रात सी काली शंकाओं मे
भाग्य अभाग्य के खातों मे
कल था निर्धन आज धनी मैं
कल का धनी अब निर्धन क्यों हूं
ये रिश्ता है वो रिश्ता है
रिश्तों मे बंध जाता क्यों हूं
अति तनाव के वो क्षण काले
आत्मा तक मे लगते छाले
लेकिन जिनसे तनाव बढता
उनसे ही क्यों लगाव बढता???????
कर्तव्यों मे घिरा हुआ सा
मुक्ति की आशा क्यों करता मै
सबसे निर्भय दिखने वाला
अपने आप से क्यों डरता मै
जीवन भर का जोङ घटाना
शून्य साथ मे ले कर जाना
फिर भी जीवन गणित ना समझा
जाने किन पन्नों मे उलझा
उलझन उलझन उलझन उलझन
जीवन क्या तुम उलझन ही हो
या फिर चिन्ताओं मे डूबे
थके हुए टूटे मन ही हो
अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो
तुम ही आ कर के बतलाना
जीवन क्या है-जीवन क्यूं है
जीवन क्योंकर बीत रहा है

नालायक विध्यार्थी की सरस्वती वन्दना

माता शारदे भवानी, ऐसा वरदान दे दे,
हो जाये जुगाङ कुछ, हर इम्तेहान में
फेल हो गया बङी बेज्जती खराब होगी,
बैठना पङेगा मुझे, पान की दुकान मे
एसएसटी-कम्प्यूटर-जीके-मैथ-आर्ट-इंगलिश
हिन्दी-संस्क्रत-साइंस,कुछ नहीं आता है
शेक्सपियर, अकबर, न्यूटन तो मर गये,
स्कूल भूतों का डेरा नज़र आता है
ऐसा कर दे कमाल, आ जाये कोई भूचाल,
जिसमे केवल स्कूल गिर जाये माँ
ना कोई हताहत हो, ना किसी को चोट लगे,
आन्सरों की शीट, मलबे मे दब जाये माँ
यू नू मैया बैटर के, कितनी है टैंशन,
एक्ज़ामों मे छोरियाँ भी गायब हो जाती हैं
मैसेज ना भेजे कोइ, ना ही मिस्ड काल मारे,
फोन भी करो तो हाय फोन न उठाती हैं
मेरी प्रोबलम जैनुअन है माँ तू ही देख,
माँगता हूं तुझसे मै, यही मुझे वर दे
हर साल खेलूं होली चैन से सुकून से माँ,
अगले बरस से एक्ज़ाम बन्द कर दे

मिडिल क्लास स्वीट होम

नील गगन की छाँव मे, नदी किनारे गाँव मे
हम इक घर बनवायेंगे, महलों सा सजवायेंगे
आकांक्षायें बङी-बङी थीं, जेब मगर छोटी सी थी
खर्च अधिक था,धन की कमी थी, बात यही मोटी सी थी
लोन लिया कुछ ज़ेवर बेचा, कुछ जुगाङ से जुटवाया
प्लाट के लायक यारों हमने, धन था इकट्ठा करवाया
पुरखों की कुछ ज़मीन बेची, पोजीशन भई निल यारों
लेकिन कान्स्ट्रक्शन के लायक, भी कर लिया जमा प्यारों
इक अच्छा सा मुहूर्त देखा, नीव का पूजन करवाया
अपने निजी प्लौट मे हमने, पहला पत्थर लगवाया
पहला पत्थर लगवाते ही, खर खर की आवाज़ हुई
कुछ ही क्षणों मे प्लौट के सम्मुख,अफसर जी की कार रुकी
अफसर जी फिर नीचे उतरे, हमने कैम्पा मंगवाया
ठंडा-ठंडा सर्व किया और, प्यार से उनको पिलवाया
पी कर कैम्पा वो गुर्राये, ये सब क्या करवाया है
इस कान्स्ट्रक्शन वर्क का तुमने नक्शा पास कराया है?
रोको इस निर्माण को फौरन, हम इसको तुङवायेंगे
या फिर सारे प्लौट को बन्धु, हम तो सील करायेंगे
हम बोले प्रभु ये ना करना, हम तो मारे जायेंगे
जो तुम थोङी क्रपा दिखा दो, तुम पर वारे जायेंगे
वे बोले यूँ क्रपा ना होती, `सेवा पानी` करवाओ
अपने प्लौट के पेपर ले कर, तुम मेरे दफ्तर आओ
दफ्तर जा कर सैटिंग कर ली, सौदा फाइनल करवाया
रुका हुआ जो काम था मेरा, मैने फिर से लगवाया
लेकिन काम लगाते ही, इक और थी विपदा आन पङी
जैसे पीछे पलट के देखा, पुलिस की जिप्सी द्वार खङी
जिप्सी से दो मामू उतरे, बोले काम को रुकवाओ
फौरन इस जिप्सी में बैठो,या फिर खुद थाने आओ
थाने जा कर सैटिंग कर के, फिर से काम लगाया था
नगर विकास विभाग का बन्दा, दूजे ही दिन आया था
बोला काम को रुकवा दो और्, मै फिर परसों आऊँगा
बात जो मेरी ना मानी तो, मै नोटिस भिजवाऊँगा
उससे भी फिर सैटिंग कर ली, अतिक्रमण वाले आये
आते ही यारों वो हम पर, चिल्लाये और गुर्राये
बोले ये क्या करवाया है, क्या हमको मरवाओगे
ईंटें पटरी पर रखवा कर, क्या सस्पेंड कराओगे
उनसे भी फिर सैटिंग कर ली, सङक पे मलबा पङवाया
रुका हुआ जो काम था मेरा, मैने फिर से लगवाया
जैसे-तैसे काम लगा फिर, लोग बाग कुछ और आये
लेकिन सैटिंग हो जाने पर, निज-निज दफ्तर को धाये
फिर भी यारों रो-धो कर के,कान्स्ट्रक्शन सम्पूर्ण हुआ
आसमान की छाँव मे घर का, सपना मेरा पूर्ण हुआ
लेकिन सपना पूरा करते-करते मै बेहाल हुआ
सब कुछ लगा दिया था उसमें, यारों मै कंगाल हुआ
फिर भी मैने हिम्मत कर के, ग्रह प्रवेश था करवाया
लेकिन घर में घुसते ही बस, हाउस टैक्स वाला आया
बोला प्लौट के पेपर लाओ,असेस्मेन्ट करवानी है
तेरे इस मकान की पुत्तर,नाप-जोख करवानी है
उससे सैटिंग कर ना पाया, जेब तो मेरी खाली थी
बेचन को अब एक चीज़ थी, वो मेरी घरवाली थी
हाथ जोङ कर मै बोला, अहसान भुला ना पाऊँगा
टैक्स सही लगवा देना, पर सेवा ना कर पाऊँगा
फिर कुछ दिन के बाद मेरे घर, इक लम्बा नोटिस आया
घर की क़ीमत से ज्यादा था, ग्रह-कर को मैने पाया
घर बेचा और टैक्स चुकाया, सङक पे झुग्गी पङवाई
चैन से जीवन वहीं पे बीता, शान्ति वहीं मैने पाई

दहकते हाथ

दहकते हाथ पिघलती कलम
काँपते होठ,धधकते नयन
ह्रदय मे उठते सौ तूफान
मन मे बिजली सी कङकती है
खाक हो जाते जब अरमान्
एक कविता तब बनती है

तड़पते शब्द, उबलता खून
दिल में उठता जब कोई जुनून
हर कोई लगता जब अन्जान
आत्मा जलने लगती है
नज़र आयें जब बस शैतान
एक कविता तब बनती है

दफ्न करते करते मुस्कान
ह्रदय जब बन जाता शमशान
ज़िन्दगी जब लगती वीरान
हर ज़मीं मरुथल लगती है
डिगें जब अपनो के ईमान
एक कविता तब बनती है

काव्य स्रजन

कामना व्यथा बने
प्रेम बस कथा बने
भावना का ह्रास हो
टूटता विश्वास हो
प्रेम की चिता तले
हिय मे आग जब जले
जब भी टूट जाता मन
होता काव्य का स्रजन

जन गण मन की व्यथा

01- आतंकित सा दिखता कण- हाहाकार मचाते ...........जनगण्
02- खोज रहे फिर से नव जीवन्- सौ करोङ टूटे उलझे .......मन
03- बनते जाते है दुखदायक- स्वार्थपरयण से ............अधिनायक
04- हे मां हमको ये बतला दे- किसकी अब हम बोलें .......जय हे
05- सुन कर होता है मन आहत- कर्ज़ में डूबा मेरा......... भारत
06- देश मेरे क्यूं ना बतलाता- कहां है तेरा........... भाग्यविधाता
07- रो रो कहते पांचों आब- कहां खो गया वो .................पंजाब
08- मांग रहा है फिर से हिन्द- वापस ला दो मेरा ...........सिन्ध
09- क्यूं बिगङे मेरे हालात- कहता गांधी का .................गुजरात
10- भूल के अपनी गौरव गाथा- गढ आतंक का बना ........मराठा
11- सूख रही अज़ादी की जङ- ढूंढ रहा अस्तित्व को .......द्राविङ
12- खोते जाते सब रस रंग- खोते जाते .................उत्कल बंग
13- घोटालों से हो कर घायल- शर्म से झुकते ....विन्ध्य हिमांचल
14- कहीं पे झगङा कहीं पे दंगा- हुईं प्रदूषित ..........यमुना गंगा
15- दबा के अपनी हरेक उमंग रोती ..........उच्छल जलधि तरंग
16- जाने हम हैं कैसे अभागे- जो ना ...........तव शुभना मे जागे
17- अब तो मां तू हमें जगा दे- ये ही ......तव शुभ आशिष मांगे
18- मां के चरण शत्रु का माथा- फिर तू ......गा हे तव जय गाथा
19- राष्ट्र को दें जीवन का क्षण क्षण- ऐसे हों भारत के ...जन गण
20- स्वार्थहीन हों राष्ट्र के नायक- जन-जन को हों...... मंगलदायक
21- सत्यदर्शिनी तेरी जय हे- पथ प्रदर्शिनी तेरी .............जय हे
22- सदा रहे शुभ कर्मों मे रत- ऐसा कर दे मेरा .............भारत
23- राष्ट्र हेतु निज शीश का दाता- ऐसा दे दे.......... भाग्यविधाता
24- राष्ट्र के सेवक जय हे जय हे- सच्चे रक्षक....... जय हे जय हे
25- भारत माता तेरी जय हे- विश्व विधाता तेरी ..............जय हे
26- रहे सदा तू अजर अमर हे- मां तेरी...... जय जय जय जय हे

धूप-छांव्

अमवा की छाया है मन अति भाया है
,सुन्दर सलोना अनपढ जैसा नाम है
बङे बङे शहरों मे देख के प्रदूषणों को
आज् मुझे याद आता फिर मेरा गांव है,
खग कहुं बोल रहे श्वान कहुं डोल रहे
भोर भये कागन की वही कांव कांव है
ना ही कोइ गाङी यहां ना ही कल कारखाने
शोर धुआं गन्दगी का नाम ना निशान है
खुले खुले घर यहां स्वच्छ जल वायु भी है
उजले मनों के श्याम तन की भी शान है
रिमझिम बरखा मे टपके जो छत चाहे
सोवें सब बेखटक बरसाती तान हैं
ललुआ चराये भैंस कलुआ है बाग मे
ददुआ उठाये रोटी जात खलिहान हैं
एक छोटा मेला लगे कुल्फी का ठेला लगे
आइस्क्रीम पार्लर वही आलीशान है
छोटी छोटी ख्वाहिशें हैं छोटी फरमाइशें हैं
रूस का भविष्य लेके कक्का परेशान हैं
सभी भाई भाई यहां रहें सब हिल मिल
इत शहरों को देख हम हैरान है
बङी सी कालोनिय़ां हैं बन्द बन्द कमरे हैं
तन हैं थके थके से मन परेशान हैं
धूप हवा पानी नहीं एक मीठी बानी नहीं
लङने झगङने मे लोगन की शान है
दुनियां की धूप कहीं कितनी म्रदुल् और
कितनी कठोर कहीं कहीं कोइ छांव है
यही धूप छाया देख् शहरों की माया देख,
आज मुझे याद आता फिर मेरा गांव है.....

चक्रव्यूह

बात उस समय की कहता हूं, मां के गर्भ मे बैठा था जब
वीर अभिमन्यु की ही भांति मैं, सब कुछ कुछ-कुछ सुनता था तब
कभी पिताजी मां से कहते, राजनीति में मोङ आ गया
या इक नेता दूजे दल मे, अपने दल को तोङ आ गया
कभी बताते गुन्डागर्दी, या फिर मिडिल क्लास सिरदर्दी
कभी बताते वो दिन अपने, बिना कोट जब काटी सर्दी
यानी कि वह जो भी कहते, मै सब कुछ सुनता जाता
मां के गर्भ मे आरक्षित सा, शनेः-शनेः बढता जाता
एक बार की बात,पिताजी, थके हुए से घर आये
हारे हुए जुआरी जैसे, दिखते थे मुंह लटकाये
मां ने पूछा आज क्या हुआ, ग्रीष्म मे जो यह शीत आ गयी
धीरे से बोले पापा तब, नव आरक्षण नीति आ गयी
मेहनत-अनुभव-शिक्षा-श्रद्धा, इनका पूर्ण अहित होगा
कुछ लोगों के लिये प्रिये अब, सब कुछ आरक्षित होगा
अपने तो नन्हे से सर मे, कुछ भी समझ मे ना आया
आज पिताजी क्या बोले थे, क्या था उन्होंने समझाया
धीरे-धीरे समय था बीता, मेरे जन्म का वक़्त आया
मां बापू ने जा कर द्वार था, अस्पताल का खटकाया
द्वार खुला, डॉक्टर ने पूछा, हे मरीज़ तुम कैसे हो
दिखते हो समान्य मगर, बतलाओ किस कोटे से हो
मां बोली हम तो जनरल हैं, जनरल वार्ड दिला देना
जनरल वार्ड के इक कोने मे, जनरल पलंग दिला देना
डॉक्टर बोली कुछ ना मिलेगा, यहां पलंग सौ पङे हुए
साठ फीसदी आरक्षित हैं, चलिस प्रतिशत भरे हुए
अति निराश तब लौटी थी मां, घर पर नर्स को बुलवाया
बङे कष्ट के साथ बन्धुवर, तब मै धरती पर आया
धीरे धीरे बङा हुआ कुछ, एडमीशन की बात चली
बङे शौक से तब मेरी मां, ले कर मुझको साथ चली
पहुँची इक स्कूल मे बोली, एडमीशन करवाना है
अपने इस नन्हे सपूत को, शिक्षित योग्य बनाना है
टीचर ने फिर मां से पूछा, बच्चे को क्या आता है
क ख ग घ ए बी सी डी, क्या यह सब बतलाता है
गर्व से मां बोली फौरन तब, बच्चे को सब आता है
क ख ग ए बी सी क्या है, गिनती तक बतलाता है
टीचर बोला फिर तो ठीक है, एड्मीश मिल जायेगा
या यूँ समझो ये बच्चा अब, कल से शिक्षा पायेगा
छोटी सी इक फार्मेलिटी, तुम पूरी करती जाना
जिस कोटे की भी हो उसका, प्रूफ जमा करती जाना
मां बोली हम तो जनरल हैं, प्रूफ कहां से लायेंगे
हमें बताओ बिन आरक्षण, बच्चा कहां पढायेंगे
हँस कर के तब टीचर बोला, फिर तो हम मजबूर हैं
या यूं समझो इस बच्चे की, शिक्षा के दिन दूर हैं
फिर भी यारों हिम्मत कर के, मैने थी शिक्षा पायी
गुरु दक्षिणा बनी डोनेशन, शिक्षा ने भिक्षा पायी
फिर भी यारों जैसे तैसे, पढ-लिख कर के मै आया
लेकिन उसके बाद मे मुझको, नौकरियों ने भटकाया
जहां गया बस हरेक रिक्ति को, आरक्षित मैने पाया
ना जाने कितनी जगहों पर, जूतों को था चटकाया
जैसे तैसे मिली नौकरी, प्रोन्नति के भी दिन आये
लेकिन उससे पहले ही, कोटे ने पाँव थे फैलाये
मेरा जूनियर मेरा बॉस था, क्योंकि वह कोटे का था
हालांकि वह बेटा इक, उध्योगपति मोटे का था
सदमा यह बर्दाश्त हुआ ना, स्वाभिमान को चोट लगी
कर्म की जगहा जन्म योग्यता, पा कर मन को ठेस लगी
मै बोला हे क्रष्णा सुन ले, गीता लिखना अब न पुनः
कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचनः
इतना कहते कहते मैने, प्राणों को भी छोङ दिया
इस आरक्षित जग से मैने, नाता अपना तोङ दिया
ले कर के शमशान मुझे तब, मेरे रिश्तेदार चले
उठा लिया कन्धों पर मुझको, मेरे साथी चार चले
पहुँचे थे शमशान मे वो जब, वहाँ का पन्डित ये बोला
कोटे के कागज़ दिखलाओ, फिर फूंको तुम ये चोला
पन्डित की इस बात को सुन कर, रूह ने भी दम को तोङा
आरक्षण के चक्रव्यूह मे, अभिमन्यू ने रण छोङा
कहता है दुष्यन्त,विधाता, क्या मुझको बतलायेगा
क्या हर युग में अभिमन्यू बस, यूँ ही मरा जायेगा

चाय पच्चीसी

दुनियाँ की सबसे बङी, सोशलिस्ट इक चीज़
प्यार से प्रस्तुत कर रहा, चाय लीजिये प्लीज़
जय जय चाय महा महारानी, दुनियाँ भर के ड्रिंक्स की रानी
हर तीरथ मे तुम मिल जाती, बच्चे बूढे सबको भाती
हर दफ्तर है तुम बिन सूना, तुम बिन बाबू माँगे दूना
अंग्रेज़ों की देन सुहानी, चले गये वो तुम ना जानी
तुमने कितने छात्र पढाये, कितने वैज्ञानिक बनवाये
कितनी केन्टीनें चलवायीं, कितनी कन्याऐं पटवाईं
तुमसे कितने दफ्तर चलते, तुमसे कितने बाबू पलते
ठिये चाय के जहाँ पे चलते, कई महकमे वहाँ पे पलते
इक टेबल पर जब तुम आतीं, अफसर बाबू संग बिठातीं
देवि जागरण मे चलवाओ, कवि सम्मेलन मे पिलवाओ
रात तुम्हीं से कटे भवानी, जुग जुग जियो चाय महारानी
जब दुनियाँ तनाव से भरती, तू ही सारे टैंशन हरती
मुंडन छेदन बरसी शादी, सारी रस्में तुम बिन आधी
कन्या का तुम ब्याह कराओ, चाय पे दूल्हे को बुलवाओ
चाहे नौकर से बनवाओ, पर कन्या का नाम बताओ
सैट फटाफट लङका होए, बाद भले जीवन भर रोये
घरवाली से झगङा होये, चाहे कितना तगङा होये
दो कप झटपट चाय बनाओ, इक कप बीवी को पिलवाओ
गरम चाय जब पिलवाओगे, नरम उसे फौरन पाओगे
रोज़ सुबह जो चाय बनावै, उसकी बीवी कहीं ना जावे
चाय बगान चलैं तुम ही से, गन्ना क्रषक पलैं तुम ही से
दूध का कारोबार है तुमसे, छलनी का संसार है तुमसे
कप मग चम्मच बर्तन वाले, तुमने कितने लोग हैं पाले
रंगमंचकर्मी सब पीते, सारे कवि तुम पे ही जीते
महिमा अमित ना जाय बखानी, जयति जयति जय चाय भवानी
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख या, जाति कोई भी होय
सब धरमन में व्यापती, चाय तेरी जय होय

भैंस चालीसा

भैंस चालीसा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
अकल को कोई देख ना पावे- भैंस दरस साक्षात दिखावे
अकल पढाई करन से आवे- भैंस कभी स्कूल ना जावे
भैंस के डाक्टर मौज उङावैं- अकल के डाक्टर काम ना पावैं
अकलमन्द जग से डरै,भैंस मस्त पगुराय
भैंस चलाये सींग तो, अकलमन्द भग जाय
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस कभी ना बकती गारी
भैंस कभी अतंक ना करती- भैंस मेरी भगवान से डरती
तासौं भैंस सदा मुसकावै- अकल लङे ओर अति दुख पावै
अकल तो एटम बम्ब बनाये- झटके मे संसार उङाये
भैंस दूध दे हमको पाले- बिना दूध हों चाय के लाले
अकल विभाजन देश का कीन्ही- पाक बांग्लादेश ये दीन्ही
भैंस अभी तक फर्क ना जाने- एक रूप में सबको माने
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई- भैंस सभी को दूध पिलायी
भैंस न कोइ इलैक्शन चाहे- भैंस ना कोइ सेलेक्शन चाहे
इसकी नज़र मे एक हैं सारे- मोटे पतले गोरे कारे
भेदभाव नहिं भैंस को भाया- भैंस मे ही जनतन्त्र समाया
भैंस ना कोई करै हवाला- भैंस करै ना कोइ घोटाला
पासपोर्ट ना वीजा पाती- जब चाहे विदेश हो आती
फिर भी स्मगलिंग ना करती- भैंस मेरी कानून से डरती
ता सौं भैंस हमें है प्यारी- मंगल भवन अमंगल हारी
अकल बेअकल जो मरै, अन्त सवारी भैंस
भैंस बङी है अकल से, फईनल हो गया केस

भैंस चालीसा BHAINS CHALEESA

भैंस चालीसा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
अकल को कोई देख ना पावे- भैंस दरस साक्षात दिखावे
अकल पढाई करन से आवे- भैंस कभी स्कूल ना जावे
भैंस के डाक्टर मौज उङावैं- अकल के डाक्टर काम ना पावैं
अकलमन्द जग से डरै,भैंस मस्त पगुराय
भैंस चलाये सींग तो, अकलमन्द भग जाय
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस कभी ना बकती गारी
भैंस कभी अतंक ना करती- भैंस मेरी भगवान से डरती
तासौं भैंस सदा मुसकावै- अकल लङे ओर अति दुख पावै
अकल तो एटम बम्ब बनाये- झटके मे संसार उङाये
भैंस दूध दे हमको पाले- बिना दूध हों चाय के लाले
अकल विभाजन देश का कीन्ही- पाक बांग्लादेश ये दीन्ही
भैंस अभी तक फर्क ना जाने- एक रूप में सबको माने
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई- भैंस सभी को दूध पिलायी
भैंस न कोइ इलैक्शन चाहे- भैंस ना कोइ सेलेक्शन चाहे
इसकी नज़र मे एक हैं सारे- मोटे पतले गोरे कारे
भेदभाव नहिं भैंस को भाया- भैंस मे ही जनतन्त्र समाया
भैंस ना कोई करै हवाला- भैंस करै ना कोइ घोटाला
पासपोर्ट ना वीजा पाती- जब चाहे विदेश हो आती
फिर भी स्मगलिंग ना करती- भैंस मेरी कानून से डरती
ता सौं भैंस हमें है प्यारी- मंगल भवन अमंगल हारी
अकल बेअकल जो मरै, अन्त सवारी भैंस
भैंस बङी है अकल से, फईनल हो गया केस