छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो
नयनों का जल तक सूख चुका
सावन के मेघों तुम बरसो
प्यासी धरती प्यासे जंगल
प्यासी नदियाँ प्यासे हैं मन
प्यासों की प्यास बुझाने को
लेकर सारा जल धन बरसो
जलती धरती तपते मरुथल
नदियाँ भी भूल गयीं कल कल
मदमस्त पपीहा रहा मचल
उसकी ही खातिर तुम बरसो
घनघोर घटा सावन की छटा
घूंघट ना गगन का पवन हटा
ठंडी सी फुहारें आयी हैं
ओ रे मयूर अब मत तरसो
छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो
Monday, January 21, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)