Friday, August 13, 2010

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Wednesday, August 11, 2010

खेलों के खेल में Khelo ke khel me

वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
हमको दिखा के ख्वाब तरक्की के मुल्क की
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मँहंगाई की जब मार से जनता थी रो रही
वो मोतियों के हार महल में पिरो रही
हम भी फ़से हुए थे दूध घी और तेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
जनता की कमाई लुटी भूखा मरा किसान
ईमान के कदमों के भी अब मिट गये निशान
उलझा के हमें ज़िन्दगी की रेल पेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
भूखे खिलाड़ी बैठे हैं मेडल की आस में
भारत का नाम ऊँचा उठाने की प्यास में
बेखौफ़ कत्ल उनके भी अरमानों का करके
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मनमोहना मजबूरी की बंसी बजा रहा
और रास लीला कंस मस्त हो रचा रहा
बेची है राजधानी पूतना ने सेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
शायद वो जानते नहीं हैं हश्र क्या होना
खानी हैं रोटियाँ ही ना चांदी नहीं सोना
पहुँचायेगी जनता उन्हें जल्दी ही जेल में
जो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में

http://www.youtube.com/watch?v=wbR1d61x3PI