Sunday, October 5, 2008

साथी वापस आ जाओ SAATHI WAPAS A JAO

कौन है अच्छा कौन बुरा है,
इन बातों पे मत जाओ
सूना है घर बिना तुम्हारे,
साथी वापस आ जाओ
घर मे सबकी जगह बराबर,
ये घर सदा तुम्हारा है
तुमको वापस आना होगा,
अगर ये तुमको प्यारा है
इस जहाज़ के हम सब पंछी,
अपना यहीं बसेरा है
डर है कहीं तुम खो ना जाओ,
छाया घोर अन्धेरा है
मरघट सा छाया सन्नाटा,
अमन का ये पैग़ाम नही
बेमतलब जो हुई लङाई,
क्रान्ति भी उसका नाम नहीं
हम भी ज़िद्दी, तुम भी ज़िद्दी,
अब इस ज़िद पर मत जाओ
सूना है घर बिना तुम्हारे,
साथी वापस आ जाओ

Saturday, September 27, 2008

असली आतंकवादी ASALI AATANKWAADI

बाँटती आतंकियों को कानूनी मदद और
अगले धमाके का जो करे इन्तज़ार है
कोई मरे कोई जिये,इसे कोई फर्क नहीं
असली आतंकवादी,खुद सरकार है

मरें जो हज़ारों इन्हें कोई भी शरम नही
हत्यारों के लिये सिर्फ मानवाधिकार है
कहते कङाई से मुक़ाबला करेंगे हम
पर कुछ ना करें,धिक्कार है धिक्कार है

भूल के जो बलिदान, संसद के शहीदों का
आतंकी को फाँसी ना दो हो रही गुहार है
मेडल वापस लेते आई ना शरम हाय
प्रजातंत्र का ये सरे आम बलात्कार है

Friday, May 30, 2008

क्या कहिये KYA KAHIYE

कौन सा रिश्ता सच्चा है अब
किस रिश्ते को क्या कहिये
अपने ही जब ज़ख्म दे रहे
बेगानों को क्या कहिये
ना जाने क्या किया है हमने
किसी से कोई बैर नहीं
क़त्ल किया है हमको जिसने
यारों वो भी ग़ैर नहीं
झूठ की नैया तैर रही है
सच का माझी सोया है
हर रिश्ते ने ग़म के सागर
मे बस हमें डुबोया है
माला के मोतियों से बिखरे
अरमानों को क्या कहिये
अपने ही जब ज़ख्म दे रहे
बेगानों को क्या कहिये

क्रष्णमय KRISHNAMAY

जय क्रष्ण मुरारी, जन सुखकारी,
क्रपा करहु सुर भूपा
जय मंगलकारी, सब दुखहारी,
कष्ट हरो सुख रूपा
हे नाथ हमारे, कान्हा प्यारे,
रूप तुम्हार अनूपा
जो तुमको ध्यावैं, सब सुख पावैं,
सो ना परै भव कूपा|
भव सिन्धु अगाधा, चहुँ दिसि बाधा,
अब तो हम हैं डुबैया
हम तो हैं अनाथी, संग ना साथी,
तात मात नहिं भैया
हम निपट अभागे, डूबन लागे,
अब तो आओ खेवैया
जय बंसी बजैया, धेनु चरैया,
पार करो मेरी नैया

Wednesday, April 2, 2008

कलम तोङ शायर KALAM TOD SHAYAR

कलम तोङ लिख रहे शायरी, वाह रे भैया
लिख लिख भर दी खूब डायरी वाह रे भैया
कभी शेर के कान मरोङें, वाह रे भैया
नज़्मों की भी टांगे तोङें, वाह रे भैया
क्या है शायरी पता नहीं, लिखते जाते हैं
बङे भयानक शायर ये दिखते जाते हैं
ना दोहा ना छन्द रुबाई मुक्तक जानें
फिर भी इनको कवि यहां सब तगङा माने
ग़लत जो इनको कहे, खैर उसकी ना भैया
डुबो के छोङेंगे ये तो साहित्य की नैया
ऐसे कवियों के नज़दीक ना भूल के जाओ
है बन्दर के हाथ उस्तरा, प्रभू बचाओ
ओट शिखन्डी की लेकर वो लङ जाते हैं
भूल युद्ध के नियम, वो कुछ भी कर जाते हैं
अभी करेगी सेना उनकी ता ता थैया
कलम तोङ फिर होगी शायरी, वाह रे भैया|

Friday, March 28, 2008

वन्दे मातरम VANDE MATARAM

केसरिया वो तिलक लगा के
देश भक्ति के भाव जगा के
आज़ादी की अलख जगा के
मिल के गायें हम
वन्दे मातरम...
वन्दे मातरम
दुनियाँ भर मे हम छा जायें
भारत माँ की शान बढायें
सच के रस्ते बढते जायें
फिर दोहरायें हम
वन्दे मातरम...
वन्दे मातरम
भेद भाव सब दूर भगा के
भारत से आतंक मिटा के
जान का अपनी दाँव लगा के
बढते जायें हम
वन्दे मातरम...
वन्दे मातरम

नाथन के नाथ अनाथ हैं हम NATHAN KE NATH ANATH HAIN HUM

नाथन के नाथ अनाथ हैं हम,
फिर आन ना संकट क्यू हरते
कहते हैं दीन दयाल हो तुम,
इस दीन की पीर न क्यूं हरते
क्यूं काम मोरे बिगरे सगरे,
तुम आकर राह दिखा जाओ
सब रिश्ते नाते झूठ हुए,
पितु मातु तुम्हीं हो निभा जाओ जाओ
बस हौंस तुम्हारे नाम की है,
इस नाम से ही सब दुख डरते
नाथन के नाथ अनाथ हैं हम,
फिर आन ना संकट क्यू हरते

जाने क्यूँ???

दिल मे कोई बात नहीं है
कोई भी जज़्बात नहीं है
इन्तज़ार की बात नहीं है
फिर भी तकता राह किसी की

ग़म का कोई नहीं अन्धेरा
नहीं खुशी का कोई सवेरा
ना अरमानों का कोई डेरा
फिर भी तकता राह किसी की

कोई फूल ना खिलने वाला
नहीं कोई भी मिलने वाला
जाम न साक़ी, खाली प्याला
फिर भी तकता राह किसी की

इक तरफा इक़रार है शायद
बिना कहे इज़हार है शायद
हुआ नहीं, पर प्यार है शायद
फिर भी तकता राह किसी की

Tuesday, February 5, 2008

काव्य रेसिपी

एक कटोरी शब्द लो, आधा कप अरमान
डाल के मन के थाल में, साफ करो श्रीमान
साफ करो श्रीमान, दुखों की आग जलाओ
धीमी धीमी आँच पे, इनको खूब पकाओ
इनको खूब पकाओ, प्यार दो चम्मच डालो
नमक आँसुओं का फिर, थोङा यार मिला लो
मिला आँसुओं क नमक, कुछ डालो जज्बात
कुछ डालो मासूमियत, कुछ डालो हालात
कुछ डालो हालात, प्यार से फिर ढक देना
आँखें जब भर आयें, उबलने तब तक देना
उबल जाय जब ये सभी,दिल को कुछ समझाय
खामोशी का आप फिर, तङका देओ लगाय
तङका देओ लगाय, सर्व फिर गरम कराओ
काव्य रेसिपी यही है,मिल कर लुत्फ उठाओ

Friday, February 1, 2008

सीधी बात

चला आजकल दोस्तों,एक नया व्यापार
खोल दुकानें धर्म की, होता कारोबार
होता कारोबार कि लागत ज़ीरो भैया
लोग छुएंगे पैर , बनोगे हीरो भैया
गली गली फिरते यहाँ, कितने नकली सन्त
चलें लक्ज़री कार में, पैसा हुआ अनन्त
पैसा हुआ अनन्त, किसी ने हमें बताया
बाबा जी ने ब्याज पे, कितना माल उठाया
गली गली वो बेचते, जीसस राम रहीम
हम को देते छाछ और, खुद खा जाते क्रीम
खुद खा जाते क्रीम,कि अब तो होश मे आओ
अरे दलालों धर्म के, कुछ तो शरम दिखाओ
गलती है अपनी यहाँ, इनकी क्या औकात
हम ही ईश्वर से नहीं, करते सीधी बात
करते सीधी बात, तो ऐसा हाल ना होता
सन्त माफिया का ये तगङा, जाल ना होता|

Sunday, January 27, 2008

तलाश

रिश्तों मे दुख, नातों मे दुख
घर मे भी दुख, बाहर भी दुख
जीवन के हर मोङ पे बस दुख
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी किसी की बातें दुखतीं
कहीं पुरानी यादें दुखतीं
रक्त के वो सम्बन्ध खो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

मन मे जो भी तनाव भरता
जाकर इक कागज़ पे उतरता
कागज़ भी अब बोझ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी पुराने लोग थे कहते
बँटने से सुख दुगुना होता
मैने भी था सुखों को बाँटा
पर बँट कर वे लोप हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

भटक भटक कर मन भी हारा
रहा अकेला मै बेचारा
सपने भी अब स्वयम् सो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कोई कहे कर्तव्य मे सुख है
कोई कहे वैराग्य में सुख है
सारे सच अब झूठ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

Monday, January 21, 2008

बरखा

छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो
नयनों का जल तक सूख चुका
सावन के मेघों तुम बरसो
प्यासी धरती प्यासे जंगल
प्यासी नदियाँ प्यासे हैं मन
प्यासों की प्यास बुझाने को
लेकर सारा जल धन बरसो
जलती धरती तपते मरुथल
नदियाँ भी भूल गयीं कल कल
मदमस्त पपीहा रहा मचल
उसकी ही खातिर तुम बरसो
घनघोर घटा सावन की छटा
घूंघट ना गगन का पवन हटा
ठंडी सी फुहारें आयी हैं
ओ रे मयूर अब मत तरसो
छम छम बरसो झम झम बरसो
रिम झिम बरसो जम कर बरसो