Tuesday, February 5, 2008

काव्य रेसिपी

एक कटोरी शब्द लो, आधा कप अरमान
डाल के मन के थाल में, साफ करो श्रीमान
साफ करो श्रीमान, दुखों की आग जलाओ
धीमी धीमी आँच पे, इनको खूब पकाओ
इनको खूब पकाओ, प्यार दो चम्मच डालो
नमक आँसुओं का फिर, थोङा यार मिला लो
मिला आँसुओं क नमक, कुछ डालो जज्बात
कुछ डालो मासूमियत, कुछ डालो हालात
कुछ डालो हालात, प्यार से फिर ढक देना
आँखें जब भर आयें, उबलने तब तक देना
उबल जाय जब ये सभी,दिल को कुछ समझाय
खामोशी का आप फिर, तङका देओ लगाय
तङका देओ लगाय, सर्व फिर गरम कराओ
काव्य रेसिपी यही है,मिल कर लुत्फ उठाओ

Friday, February 1, 2008

सीधी बात

चला आजकल दोस्तों,एक नया व्यापार
खोल दुकानें धर्म की, होता कारोबार
होता कारोबार कि लागत ज़ीरो भैया
लोग छुएंगे पैर , बनोगे हीरो भैया
गली गली फिरते यहाँ, कितने नकली सन्त
चलें लक्ज़री कार में, पैसा हुआ अनन्त
पैसा हुआ अनन्त, किसी ने हमें बताया
बाबा जी ने ब्याज पे, कितना माल उठाया
गली गली वो बेचते, जीसस राम रहीम
हम को देते छाछ और, खुद खा जाते क्रीम
खुद खा जाते क्रीम,कि अब तो होश मे आओ
अरे दलालों धर्म के, कुछ तो शरम दिखाओ
गलती है अपनी यहाँ, इनकी क्या औकात
हम ही ईश्वर से नहीं, करते सीधी बात
करते सीधी बात, तो ऐसा हाल ना होता
सन्त माफिया का ये तगङा, जाल ना होता|