Friday, December 21, 2007

अमर सुहागन

कारगिल युद्ध मे शहीद जो जवान हुए
उनको नमन कर धन्य यह देश हुआ
गोलियों की बरिशों मे विजय का नाद देख
खुशी और गम का अजीब समावेश हुआ
छलनी छाती को लिये, गर्व से तने सरों मे
आगे बढने के लिये और भी आवेश हुआ
म्रत्यु पूर्व भेजते सन्देश देश नायकों को
सीमा लांघने का हमें, क्यूं नहीं आदेश हुआ
शान से वो लङे, देश हित में न्योछारे प्राण
आज लाश उनकी तिरंगा ओढ सो रही
घर से वो चले थे, जो लौट के ना घर आये
उनकी विदाई उनके घरों से हो रही
कांपते दो बूढे हाथ, अर्थी को थाम कर
पूछते हैं बोलो अब हम कहां जायेंगे
बाट जोहती दो अश्रुपूर्ण नन्हीं आंखें पूछें
मम्मी बतलाओ मेरे पापा कब आयेंगे
नयनों मे अग्नि भर्, कांपते अधर लिये
सिंहनी सी बोली माता, तव निज लाल से
वीर तो अमर होते, वीर मरते नहीं हैं
मारते हैं शत्रु को वो, ढूंढ के पाताल से
आज तेरे पिता आके, बस गये तुझमे हैं
तू भी अब शत्रुओं को देश से भगायेगा
पिता के अधूरे स्वप्न तू ही पूरे करेगा रे
कारगिल क्या तू पाकिस्तान जीत लायेगा
देख ऐसी भावनायें, मन यही कहता है
कोई कुर्बानी अब व्यर्थ नहीं जायेगी
अमर रहेंगे सदा देश के शहीद और
कोई विधवा ना अब विधवा कहायेगी
आज़ादी के सूरज की, लालिमा सिन्दूर बन
मांग ऐसी सिंहनी की, सदा ही सजायेगी
विधवा ना नाम देना, कोई इन्हें भूलवश
अमर सुहागन ये सदा ही कहायेंगी