बात सैंकड़ों साल पुरानी है मै तुम्हें सुनाता हूँ
दशरथ नन्दन जन्म भूमि की कथा तुम्हें बतलाता हूँ
कल कल कलरव करती सरयू शान्त अवध में बहती थी
राम चरण रज कण पाने को पर व्याकुल सी रहती थी
माँ सरयू की इस पीड़ा को जब ब्रह्माण्ड ने जाना
तभी अयोध्या की धरती पर हुआ राम का आना
जन्मे खेले पले बढे़ और पुरुषोत्तम कहलाये
दे कर स्थायित्व धरा को वे निज धाम सिधाये
धरा के उस पावन टुकड़े को फ़िर था सबने सँवारा
राम जन्म भूमि कह कर के सबने उसे पुकारा
सुन्दर सा इक मन्दिर था वह लोग वहाँ पर जाते थे
राम लला के दर्शन करने दूर दूर से आते थे
लेकिन समय ने करवट बदली काला बादल छाया
बाबर नामक दुष्ट राक्षस हिन्द धरा पर आया
ढहा दिया उसने वह मन्दिर इक मस्जिद बनवाई
कालान्तर में वही बाबरी मस्जिद थी कहलाई
डरे डरे से सहमे हिन्दू भयाक्रान्त ही रहते थे
चुप रह मुग़ल शहंशाहों के अत्याचार को सहते थे
औरंगज़ेब निशाचर ने तो जजिया भी लगवाया
लेकिन हाय वो निर्बल हिन्दू फ़िर भी जाग ना पाया
सदियाँ लगीं बीतने फ़िर कुछ किरन आस की जागी
बरसों से सोते हिन्दू की सुप्तावस्था भागी
ढहा दिया फ़िर सबने मिलकर वह विवाद का ढांचा
बच्चा प्रसन्न होकर झूम झूम कर नाचा
मिली सफ़लता पर दुष्यन्त की बात हुई ना पूरी है
जब तक मन्दिर बन ना जाये, कविता मेरी अधूरी है
Tuesday, September 28, 2010
Wednesday, August 11, 2010
खेलों के खेल में Khelo ke khel me
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
हमको दिखा के ख्वाब तरक्की के मुल्क की
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मँहंगाई की जब मार से जनता थी रो रही
वो मोतियों के हार महल में पिरो रही
हम भी फ़से हुए थे दूध घी और तेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
जनता की कमाई लुटी भूखा मरा किसान
ईमान के कदमों के भी अब मिट गये निशान
उलझा के हमें ज़िन्दगी की रेल पेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
भूखे खिलाड़ी बैठे हैं मेडल की आस में
भारत का नाम ऊँचा उठाने की प्यास में
बेखौफ़ कत्ल उनके भी अरमानों का करके
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मनमोहना मजबूरी की बंसी बजा रहा
और रास लीला कंस मस्त हो रचा रहा
बेची है राजधानी पूतना ने सेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
शायद वो जानते नहीं हैं हश्र क्या होना
खानी हैं रोटियाँ ही ना चांदी नहीं सोना
पहुँचायेगी जनता उन्हें जल्दी ही जेल में
जो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
http://www.youtube.com/watch?v=wbR1d61x3PI
हमको दिखा के ख्वाब तरक्की के मुल्क की
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मँहंगाई की जब मार से जनता थी रो रही
वो मोतियों के हार महल में पिरो रही
हम भी फ़से हुए थे दूध घी और तेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
जनता की कमाई लुटी भूखा मरा किसान
ईमान के कदमों के भी अब मिट गये निशान
उलझा के हमें ज़िन्दगी की रेल पेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
भूखे खिलाड़ी बैठे हैं मेडल की आस में
भारत का नाम ऊँचा उठाने की प्यास में
बेखौफ़ कत्ल उनके भी अरमानों का करके
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
मनमोहना मजबूरी की बंसी बजा रहा
और रास लीला कंस मस्त हो रचा रहा
बेची है राजधानी पूतना ने सेल में
वो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
शायद वो जानते नहीं हैं हश्र क्या होना
खानी हैं रोटियाँ ही ना चांदी नहीं सोना
पहुँचायेगी जनता उन्हें जल्दी ही जेल में
जो खेल गये खेल यूँ खेलों के खेल में
http://www.youtube.com/watch?v=wbR1d61x3PI
Wednesday, February 3, 2010
ये इस्क नहीं आसान डियर
ये इस्क नहीं आसान डियर
तगड़े-तगड़े इसमें हैं फ़ियर
बहुतै टेन्सन करवावत है
बिन बात के ये पिटवावत है
कुछ अनुभव आज सुनाइब हम
डाइरेक्ट फ़िलिम दिखवाइब हम
इक दिन हम कालेज जात रहैं
कुछ मन ही मन मुसकात रहैं
मोटरसाइकिल कावासाकी
हम करत रहैं ताका झाँकी
इक सुन्दर कन्या ताड़ लिये
दोनो आँखें फ़ुल फ़ाड़ लिये
वो लट झटकावत आवत थी
चंचल नैना मटकावत थी
वो चपल चंचला सी बाला
बच्चन की थी फ़ुल मधुशाला
हम हू स्टाइल मार दिये
स्पीड की सीमा पार किये
स्टन्ट सभी हम झोंक दिये
खम्भे मा बाइक ठोंक दिये
वो कहाँ गयी ना जान पडे़
बस हम गोबर मा आन पडे़
टूटी हड्डी टूटे थे गियर
ये इस्क नहीं आसान डियर
तगड़े-तगड़े इसमें हैं फ़ियर
बहुतै टेन्सन करवावत है
बिन बात के ये पिटवावत है
कुछ अनुभव आज सुनाइब हम
डाइरेक्ट फ़िलिम दिखवाइब हम
इक दिन हम कालेज जात रहैं
कुछ मन ही मन मुसकात रहैं
मोटरसाइकिल कावासाकी
हम करत रहैं ताका झाँकी
इक सुन्दर कन्या ताड़ लिये
दोनो आँखें फ़ुल फ़ाड़ लिये
वो लट झटकावत आवत थी
चंचल नैना मटकावत थी
वो चपल चंचला सी बाला
बच्चन की थी फ़ुल मधुशाला
हम हू स्टाइल मार दिये
स्पीड की सीमा पार किये
स्टन्ट सभी हम झोंक दिये
खम्भे मा बाइक ठोंक दिये
वो कहाँ गयी ना जान पडे़
बस हम गोबर मा आन पडे़
टूटी हड्डी टूटे थे गियर
ये इस्क नहीं आसान डियर
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