Friday, May 30, 2008

क्या कहिये KYA KAHIYE

कौन सा रिश्ता सच्चा है अब
किस रिश्ते को क्या कहिये
अपने ही जब ज़ख्म दे रहे
बेगानों को क्या कहिये
ना जाने क्या किया है हमने
किसी से कोई बैर नहीं
क़त्ल किया है हमको जिसने
यारों वो भी ग़ैर नहीं
झूठ की नैया तैर रही है
सच का माझी सोया है
हर रिश्ते ने ग़म के सागर
मे बस हमें डुबोया है
माला के मोतियों से बिखरे
अरमानों को क्या कहिये
अपने ही जब ज़ख्म दे रहे
बेगानों को क्या कहिये

2 comments:

Anonymous said...

its a nice poem Dushyant ji....... keep posting more of the same....

Jit said...

so very true, touches deep inside !