Sunday, December 2, 2007

चाय पच्चीसी

दुनियाँ की सबसे बङी, सोशलिस्ट इक चीज़
प्यार से प्रस्तुत कर रहा, चाय लीजिये प्लीज़
जय जय चाय महा महारानी, दुनियाँ भर के ड्रिंक्स की रानी
हर तीरथ मे तुम मिल जाती, बच्चे बूढे सबको भाती
हर दफ्तर है तुम बिन सूना, तुम बिन बाबू माँगे दूना
अंग्रेज़ों की देन सुहानी, चले गये वो तुम ना जानी
तुमने कितने छात्र पढाये, कितने वैज्ञानिक बनवाये
कितनी केन्टीनें चलवायीं, कितनी कन्याऐं पटवाईं
तुमसे कितने दफ्तर चलते, तुमसे कितने बाबू पलते
ठिये चाय के जहाँ पे चलते, कई महकमे वहाँ पे पलते
इक टेबल पर जब तुम आतीं, अफसर बाबू संग बिठातीं
देवि जागरण मे चलवाओ, कवि सम्मेलन मे पिलवाओ
रात तुम्हीं से कटे भवानी, जुग जुग जियो चाय महारानी
जब दुनियाँ तनाव से भरती, तू ही सारे टैंशन हरती
मुंडन छेदन बरसी शादी, सारी रस्में तुम बिन आधी
कन्या का तुम ब्याह कराओ, चाय पे दूल्हे को बुलवाओ
चाहे नौकर से बनवाओ, पर कन्या का नाम बताओ
सैट फटाफट लङका होए, बाद भले जीवन भर रोये
घरवाली से झगङा होये, चाहे कितना तगङा होये
दो कप झटपट चाय बनाओ, इक कप बीवी को पिलवाओ
गरम चाय जब पिलवाओगे, नरम उसे फौरन पाओगे
रोज़ सुबह जो चाय बनावै, उसकी बीवी कहीं ना जावे
चाय बगान चलैं तुम ही से, गन्ना क्रषक पलैं तुम ही से
दूध का कारोबार है तुमसे, छलनी का संसार है तुमसे
कप मग चम्मच बर्तन वाले, तुमने कितने लोग हैं पाले
रंगमंचकर्मी सब पीते, सारे कवि तुम पे ही जीते
महिमा अमित ना जाय बखानी, जयति जयति जय चाय भवानी
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख या, जाति कोई भी होय
सब धरमन में व्यापती, चाय तेरी जय होय

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