Sunday, December 2, 2007

दहकते हाथ

दहकते हाथ पिघलती कलम
काँपते होठ,धधकते नयन
ह्रदय मे उठते सौ तूफान
मन मे बिजली सी कङकती है
खाक हो जाते जब अरमान्
एक कविता तब बनती है

तड़पते शब्द, उबलता खून
दिल में उठता जब कोई जुनून
हर कोई लगता जब अन्जान
आत्मा जलने लगती है
नज़र आयें जब बस शैतान
एक कविता तब बनती है

दफ्न करते करते मुस्कान
ह्रदय जब बन जाता शमशान
ज़िन्दगी जब लगती वीरान
हर ज़मीं मरुथल लगती है
डिगें जब अपनो के ईमान
एक कविता तब बनती है

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