Sunday, December 2, 2007

चक्रव्यूह

बात उस समय की कहता हूं, मां के गर्भ मे बैठा था जब
वीर अभिमन्यु की ही भांति मैं, सब कुछ कुछ-कुछ सुनता था तब
कभी पिताजी मां से कहते, राजनीति में मोङ आ गया
या इक नेता दूजे दल मे, अपने दल को तोङ आ गया
कभी बताते गुन्डागर्दी, या फिर मिडिल क्लास सिरदर्दी
कभी बताते वो दिन अपने, बिना कोट जब काटी सर्दी
यानी कि वह जो भी कहते, मै सब कुछ सुनता जाता
मां के गर्भ मे आरक्षित सा, शनेः-शनेः बढता जाता
एक बार की बात,पिताजी, थके हुए से घर आये
हारे हुए जुआरी जैसे, दिखते थे मुंह लटकाये
मां ने पूछा आज क्या हुआ, ग्रीष्म मे जो यह शीत आ गयी
धीरे से बोले पापा तब, नव आरक्षण नीति आ गयी
मेहनत-अनुभव-शिक्षा-श्रद्धा, इनका पूर्ण अहित होगा
कुछ लोगों के लिये प्रिये अब, सब कुछ आरक्षित होगा
अपने तो नन्हे से सर मे, कुछ भी समझ मे ना आया
आज पिताजी क्या बोले थे, क्या था उन्होंने समझाया
धीरे-धीरे समय था बीता, मेरे जन्म का वक़्त आया
मां बापू ने जा कर द्वार था, अस्पताल का खटकाया
द्वार खुला, डॉक्टर ने पूछा, हे मरीज़ तुम कैसे हो
दिखते हो समान्य मगर, बतलाओ किस कोटे से हो
मां बोली हम तो जनरल हैं, जनरल वार्ड दिला देना
जनरल वार्ड के इक कोने मे, जनरल पलंग दिला देना
डॉक्टर बोली कुछ ना मिलेगा, यहां पलंग सौ पङे हुए
साठ फीसदी आरक्षित हैं, चलिस प्रतिशत भरे हुए
अति निराश तब लौटी थी मां, घर पर नर्स को बुलवाया
बङे कष्ट के साथ बन्धुवर, तब मै धरती पर आया
धीरे धीरे बङा हुआ कुछ, एडमीशन की बात चली
बङे शौक से तब मेरी मां, ले कर मुझको साथ चली
पहुँची इक स्कूल मे बोली, एडमीशन करवाना है
अपने इस नन्हे सपूत को, शिक्षित योग्य बनाना है
टीचर ने फिर मां से पूछा, बच्चे को क्या आता है
क ख ग घ ए बी सी डी, क्या यह सब बतलाता है
गर्व से मां बोली फौरन तब, बच्चे को सब आता है
क ख ग ए बी सी क्या है, गिनती तक बतलाता है
टीचर बोला फिर तो ठीक है, एड्मीश मिल जायेगा
या यूँ समझो ये बच्चा अब, कल से शिक्षा पायेगा
छोटी सी इक फार्मेलिटी, तुम पूरी करती जाना
जिस कोटे की भी हो उसका, प्रूफ जमा करती जाना
मां बोली हम तो जनरल हैं, प्रूफ कहां से लायेंगे
हमें बताओ बिन आरक्षण, बच्चा कहां पढायेंगे
हँस कर के तब टीचर बोला, फिर तो हम मजबूर हैं
या यूं समझो इस बच्चे की, शिक्षा के दिन दूर हैं
फिर भी यारों हिम्मत कर के, मैने थी शिक्षा पायी
गुरु दक्षिणा बनी डोनेशन, शिक्षा ने भिक्षा पायी
फिर भी यारों जैसे तैसे, पढ-लिख कर के मै आया
लेकिन उसके बाद मे मुझको, नौकरियों ने भटकाया
जहां गया बस हरेक रिक्ति को, आरक्षित मैने पाया
ना जाने कितनी जगहों पर, जूतों को था चटकाया
जैसे तैसे मिली नौकरी, प्रोन्नति के भी दिन आये
लेकिन उससे पहले ही, कोटे ने पाँव थे फैलाये
मेरा जूनियर मेरा बॉस था, क्योंकि वह कोटे का था
हालांकि वह बेटा इक, उध्योगपति मोटे का था
सदमा यह बर्दाश्त हुआ ना, स्वाभिमान को चोट लगी
कर्म की जगहा जन्म योग्यता, पा कर मन को ठेस लगी
मै बोला हे क्रष्णा सुन ले, गीता लिखना अब न पुनः
कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचनः
इतना कहते कहते मैने, प्राणों को भी छोङ दिया
इस आरक्षित जग से मैने, नाता अपना तोङ दिया
ले कर के शमशान मुझे तब, मेरे रिश्तेदार चले
उठा लिया कन्धों पर मुझको, मेरे साथी चार चले
पहुँचे थे शमशान मे वो जब, वहाँ का पन्डित ये बोला
कोटे के कागज़ दिखलाओ, फिर फूंको तुम ये चोला
पन्डित की इस बात को सुन कर, रूह ने भी दम को तोङा
आरक्षण के चक्रव्यूह मे, अभिमन्यू ने रण छोङा
कहता है दुष्यन्त,विधाता, क्या मुझको बतलायेगा
क्या हर युग में अभिमन्यू बस, यूँ ही मरा जायेगा

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